इन्दिरा के मन्दिर से सुंदर बदन वे ,
मदन मूँदै बिहँसै रदन छवि छानि छानि ।
ऊरून मे ऊरू उर उरनि उरोज भीजे ,
गातनि गात अँगिरात भुज भानि भानि ।
दूरि ही ते दौरि दुरि दुरि पौर ही ते मुरि ,
मुरि जाती देव दासी अति रुचि मानि मानि ।
पीत मुख भये पीया पीतम जामिनि जगे ,
लपटत जात प्रात पीत पट तानि तानि ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।