Last modified on 5 जून 2009, at 23:24

सोती हुई बिटिया को देखकर / अशोक कुमार पाण्डेय

अभी-अभी हुलसकर सोई हैं इन साँसों में स्वरलहरियां

अभी-अभी इन होठों में खिली है एक ताज़ा कविता


अभी-अभी उगा है इन आंखों में नीला चाँद

अभी-अभी मिला है मेरी उम्मीदों को एक मज़बूत दरख़्त