भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उमड़ि घुमड़ि घन लीनो है चहूँधा घेरि / सोमनाथ
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:00, 6 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोमनाथ }} <poem> उमड़ि घुमड़ि घन लीनो है चहूँधा घेरि ...)
उमड़ि घुमड़ि घन लीनो है चहूँधा घेरि ,
शोर भयो धुरवा जवा से जूथ जरिगे ।
डह डहे भये द्रुम रंचक हवा के गुन ,
कुहू कुहू मोरवा पुकारि मोद भरिगे ।
रहि गये चातक जहाँ के तहाँ देखत ही ,
सोमनाथ कहूँ बूँदा बूँदी हू न करिगे ।
शोर भयो घोर चहुँ ओर महि मँडल मे ,
आये घन आये घन आयकै उघरिगे ।
सोमनाथ का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।