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मैं इक तारा जलता हूँ / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

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प्यार भरी आवाज़ों का
मैं इक घूँघरू आवारा
अपनी आग से जगमग
मैं जलता तारा आवारा

स्वर नहीं मिलते मेरे
मैं एक अकेला आवारा
पलकों पर जीवन अपना
मैं लेकर चलता आवारा

बीत गया जो जीवन
मैं दुख सहता आवारा
सुरत-निहारी करते करते
मैं आँख मलता आवारा