राबर्ट फ़्रोस्ट / परिचय
रॉबर्ट फ्रोस्ट की कविता 'Stopping by Woods on a Snowy Evening' मेरी प्रिय कविता है। यह अनुवाद स्वर्गीय श्री गिरिजा कुमार माथुर ने किया है। उन्होंने इस कविता के केवल अंतिम पैराग्रफ की ही हिन्दी अनुवाद किया है। हालांकि यह अनुवाद मूल कविता से सीधे तौर पर मेल नहीं खाता लेकिन कविता का मूलभाव इसमें परिलक्षित होता है। प्रस्तुत है इस कविता के अंतिम पैराग्राफ का हिंदी अनुवाद:
गहन सघन मनमोहक वन-तरु
मुझको पास बुलाते हैं,
किन्तु पूर्व किए जो वादे
मुझको याद हो आते हैं।
अभी कहां अवकाश मुझे
यह मूक निमंत्रण छलना है,
अभी मुझे तो मीलों मुझको,
मीलों मुझको चलना है...
अनुवाद- गिरिजा कुमार माथुर
यह इस कविता का उर्दू में एक उम्दा अनुवाद है....
हैं जंगल ये किसके, मैं वाकिफ़ हूं शायद
गाँव में हालांकि उसका मकाँ है
पुरबर्फ़ वादी का करना नज़ारा,
ना उसको गवारा यूँ रुकना यहाँ है
कोई खेतो-खलिहान ना नज़दीक हो जब
झील और जंगल के हैं दरमियां में
अजब कितना गुज़रेगा घोड़े पे मेरे
मेरा ठहर जाना शब-ए-शादमां में...
जंगल हैं तारिक़, गहरे, रुपहले
मग़र मुझको वादे अभी हैं निभाने
कई कोस जाना है सोने से पहले
कई कोस जाना है सोने से पहले।
.........अनुवाद- प्रो. कुलदीप सलिल संदर्भः अंग्रेजी के श्रेष्ठ कवि और उनकी कविताएँ राजपाल एण्ड सन्स, नई दिल्ली
यह है मूल कविता अंग्रेजी में
Stopping By Woods On A Snowy Evening
Whose woods these are I think I know.
His house is in the village though;
He will not see me stopping here
To watch his woods fill up with snow.
My little horse must think it queer
To stop without a farmhouse near
Between the woods and frozen lake
The darkest evening of the year.
He gives his harness bells a shake
To ask if there is some mistake.
The only other sound's the sweep
Of easy wind and downy flake.
The woods are lovely, dark and deep.
But I have promises to keep,
And miles to go before I sleep,
And miles to go before I sleep.
प्रस्तुति
सुरेन्द्र पॉल
सहायक प्राध्यापक (पत्रकारिता) एवं प्रभारी
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय
कर्मवीर विद्यापीठ, 64 आनंदनगर खण्डवा