Last modified on 16 जून 2009, at 23:24

नमक का तूफान / कविता वाचक्नवी

चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:24, 16 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''नमक का तूफ़ान''' नमक का तूफ़...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नमक का तूफ़ान


नमक का तूफ़ान
आया एक दिन
उस रात आधी

और हम
जगते रहे..........
जगते रहे..........
जगते रहे..........
चलते रहे..........
चलते रहे..........
चलते रहे..........
बहते रहे.........
बहते रहे.........
बहते रहे.........
तुम याद आए
बहुत आए
खूब आए।

नमक का तूफ़ान
आया एक दिन
थी रात आधी
पास में कोई नहीं था,
एक तिनका
छूटने का भय बड़ा था
और हम
बहते रहे........
बहते रहे........
बहते रहे........
तुम याद आए
बहुत आए
खूब आए।

नमक का तूफ़ान
आया एक दिन
था घोर काला
काश! यह ऐसे न होता
काश! यह वैसे न होता
कान में जिह्वा
धँसी-सी
तरण-वैतरणी कथा का
सर्ग कोई
कह सुनाती
और हम
सुनते रहे........
सुनते रहे........
सुनते रहे........
तुम याद आए
बहुत आए
खुब आए।

नमक का तूफ़ान
आया एक दिन
घनघोर राती
कब, कहाँ भटके
फिरे सब ओर
साथी संग ले
और.......एकाकी,

छूटते सब
गह चले जो
हाथ खींचेंगे
कभी भर आँख देखा

और हम
तकते रहे.......
तकते रहे.......
तकते रहे.......
तुम याद आए
बहुत आए
खुब आए।

नमक का तूफ़ान
आया आज
मन के सिंधु में
और हम
पीते रहे.......
पीते रहे.......
पीते रहे.......
तुम याद आए
बहुत आए
खुब आए।

और साथी!
प्यास से हम
कुलबुलाए.......
कुलबुलाए.......
होंठ खुद ही बुदबुदाए

नमक का तूफ़ान
पीने से
कहाँ, कब
प्यास बुझती,
घूँट मीठे
पान करने की
तृषा है
और हम
सुनते रहे.......
सुनते रहे.......
सुनते रहे.......
तुम याद आए
बहुत आए
खुब आए।

और आए
नमक का तूफान........