जो कुटिलता से जियेंगे / बालकवि बैरागी
छीनकर छ्लछंद से हक पराया मारकर अम्रित पिया तो क्या पिया ? हो गये बेशक अमर जी रहे अम्रित उमर लेकिन अभय अनमोल सारा छिन गया । देवता तो हो गये पर क्या हुआ देवत्व का ? आयुभर चिन्ता करो अब पद प्रतिष्टा,राजसत्ता और अपने लोक की ! छिन नहीं जाए सुधा सिंहासनों की एक हि भय रात दिन आठों प्रहर प्राण में बैठा रहे-- इस भयातुर अमर जीवन का करो क्या ?
जो किसि षड्यंत्र मे छलछंद में शामिल नहीं था पी गया सारा हलाहल हो गया कैसे अमर ? पा गया साम्राज्य ’शिव’- संग्या सहित शिवलोक का -- कर रहा कल्याण सारे विश्व का !
सुर - असुर सब पूजते उसको निरंतर साध्य सबका बन गया कर्म मे कोई कलुष जिसके नहीं है शीश पर नीलाभ नभ खुद छत्र बनकर तन गया !
जो कुटिलता से जियेंगे वे सदा विचलित रहेंगे त्राण-त्राता के लिये मारे फिरेंगे !
हक पराया मारकर छलछंद से छीना हुआ अम्रित अगर मिल भी गया तो आप उसका पान करके उम्र भर फिर क्या करेंगे ?