Last modified on 22 जून 2009, at 06:31

उम्र भर खाक़ ही छाना किये वीराने की / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:31, 22 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: उम्र भर खाक़ ही छाना किये वीराने की ली नहीं उसने खबर भी कभी दीवान...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उम्र भर खाक़ ही छाना किये वीराने की

ली नहीं उसने खबर भी कभी दीवाने की


शुक्र है, आप न लाये कभी प्याला मुझ तक

मेरी आदत है बुरी, पी के बहक जाने की


दिल में एक हूक-सी उठती है आइने को देख

क्या से क्या हो गए गर्दिश में हम ज़माने की


देखते-देखते आँखें चुरा गयी है बहार

याद भर रह गयी फूलों के मुस्कुराने की


जिसने भेजा था घड़ी भर तुझे खिलने को,गुलाब!

फ़िक्र क्या, जो वही आवाज़ दे घर आने की