भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न तुम जानते हो / रामधारी सिंह "दिनकर"

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:25, 23 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" |संग्रह=भग्न वीणा / रामधारी ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने अपने आपको
क्षमा कर दिया है।
बन्धु, तुम भी मुझे क्षमा करो।
मुमकिन है, वह ताजगी हो,
जिसे तुम थकान मानते हो।
ईश्वर की इच्छा को
न मैं जानता हूँ,
न तुम जानते हो।