भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रूस की यह कविता / अनातोली परपरा
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:14, 24 जून 2009 का अवतरण
|
रूस की यह कविता
कितनी सुन्दर
कितनी अद्भुत्त
जैसे सघन फसल में विहँसता खेत कोई
खिले जिसमें ख़ूबसूरत फूल
गूँज रहा नाद स्वर
झींगुर का संगीत कितना मधुर
दमक रहे जुगनू बहुत
देखा मैंने यह क्या ?
उतर आए 'व्यंग्यकार' कविता में
तय है अब
जल्दी ही नष्ट कर देंगे वे
टिड्डी दल की तरह
भरी-पूरी विहँसती फसल यह...
रचनाकाल : 1989