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तेरा चेहरा / अनातोली परपरा

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शरदकाल का दिन था पहला, पहला था हिमपात

धवल स्तूप से घर खड़े थे, चमक रही थी रात

पिरिदेलकिना स्टेशन पे था मुझे गाड़ी का इन्तज़ार

श्वेत पंखों-सा हिम झरे था, कोहरा था अपार


कोहरे में भी मुझे दीख पड़ा, तेरा चारु-लोचन भाल

तन्वंगी काया झलके थी, पीन-पयोधर थे उत्ताल

खिला हुआ था तेरा चेहरा जैसे चन्द्र अकास

याद मुझे है, प्रिया, तेरे मुखड़े का वह उजास