भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब के / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:57, 24 जून 2009 का अवतरण
मुझे पंछी बनाना अब के
या मछली
या कली
और बनाना ही हो आदमी
तो किसी ऐसे ग्रह पर
जहाँ यहाँ से बेहतर आदमी हो
कमी और चाहे जिस तरह की हो
पारस्परिकता की न हो।