भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घबरा कर / कुंवर नारायण

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:54, 8 सितम्बर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवि: कुंवर नारायण

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

वह किसी उम्मीद से मेरी ओर मुड़ा था

लेकिन घबरा कर वह नहीं मैं उस पर भूँक पड़ा था ।


ज़्यादातर कुत्ते

पागल नहीं होते

न ज़्यादातर जानवर

हमलावर

ज़्यादातर आदमी

डाकू नहीं होते

न ज़्यादातर जेबों में चाकू


ख़तरनाक तो दो चार ही होते लाखों में

लेकिन उनका आतंक चौकता रहता हमारी आँखों में ।


मैंने जिसे पागल समझ कर

दुतकार दिया था

वह मेरे बच्चे को ढूँढ रहा था

जिसने उसे प्यार दिया था।