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म़ाटी रचे अनाम / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

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म़ाटी रचे अनाम, कुम्हार तलाश करे

गंगाजली कि जाम, कुम्हार तलाश करे


इतने गढ़े स्वरूप, अरूप रहा फिर भी

मन का हुआ न काम, कुम्हार तलाश करे


चाकों चढ़ा, तपा तन, कुन्दन सा निखरा

फिर क्यों लगे न दाम़, कुम्हार तलाश करे


खुशियाँ सिमट गयीं क्यों एक सुराही में

दर्द हुआ क्यों आम, कुम्हार तलाश करे


तन का कलश लबालब चन्दन से, फिर क्यों

मन से गई न घाम, क़ुम्हार तलाश करे