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एक यात्रा के दौरान / पंद्रह / कुंवर नारायण
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आश्चर्य ! वह स्त्री और बच्चा भी
अकेले खड़े हैं उधर ।
क्या मैं कुछ कर सकता हूँ उनके लिए ?
स्त्री मुझे निरीह आँखों से देखती है -
“वो आते होंगे, मेरे लिए भी ......”
कुछ दूर चल कर
ठहर गया हूं –
उसके लिए ?
या अपने लिए ?
देखता हूं उसकी आंखों में
जो घिर आई थी एक दुश्चिन्ता-सी
एक सरल कृतज्ञता में बदल जाती ।