Last modified on 4 जुलाई 2009, at 01:16

एक अविवाहिता का अविस्मरण / शिरीष कुमार मौर्य

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:16, 4 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिरीष कुमार मौर्य }} <poem> जहाँ पशु-पक्षियों में भी ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जहाँ पशु-पक्षियों में भी जोड़ा बनाने का विधान हो
हमारी उस नर-मादा दुनिया में
उसने
सिर्फ़ मनुष्य बनने और अकेले रहने का
विकट फैसला लिया

अपने चुने हुए एकान्त में
अपने बुने हुए सन्नाटे में
उसने चाहा कि कोई उसे तंग न करे
और यह
एक ऐसी कार्रवाई थी
जिसे उसके अपने घेरे के बाहर
लोगों ने
विवाह विरोधी
परिवार विरोधी
समाज विरोधी
और अंत में चल कर
स्वैराचार करार दिया

अब
उसकी उम्र के पाँचवे दशक में
उसका वह एकान्त अचानक ही घुस पड़ा है
कई-कई विस्फोटों से भरे
मेरे जीवन में

उसका वह ज़बरदस्त सन्नाटा भी
गूँजता है
मुझसे जुड़े दूसरे रिश्तों के आत्मीय
कोलाहल के बीच

उसे पता नहीं
या फिर शायद जानबूझ कर वह चली आई है
एक ऐसी ख़तरनाक़ जगह पर
जो ख़ुद मुझे पाँव देने को तैयार नहीं
और
जिसका
कोई स्मरण
कभी
बाक़ी न रहेगा

मालूम होना चाहिए उसे
कि मुझ जैसा कायर कवि नहीं
उसके इस तरह अविस्मरणीय होने की कथा तो
उस जैसा
कोई मनुष्य ही कहेगा !