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सूरज दादा रहम करो / श्याम सुन्दर अग्रवाल
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सूरज दादा रहम करो,
गरमी को कुछ कम करो।
सुबह सवेरे आते हो,
बहुत देर से जाते हो।
इतना न तुम काम करो,
थोड़ा तो आराम करो।
धरती खूब तपाते हो,
बच्चों को झुलसाते हो।
खूब पसीना आता है,
काम नहीं हो पाता है।
न ही पाते हैं हम खेल,
घर में ही बन गई है जेल।
पंखा, कूलर, ठंडा पानी,
देते है थोड़ी ज़िंदगानी।
चली जाए जब बिजली रानी,
सबको याद आती है नानी।
लू ने किया हाल-बेहाल,
सूख गए सब पोखर-ताल।
नहीं मिलता पीने को पानी,
सुस्त हो गई चिड़िया रानी।
बच्चों से थोड़ा प्यार करो,
छुट्टियाँ न बेकार करो।
विनती है तुम सेंक घटाओ,
चंदा-मामा से बन जाओ।
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