आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री।
सुबहदम देखकर गुलों का निखार॥
दूर से देख लो हसीनों को।
न बनाना कभी गले का हार॥
अपने ही साये से भड़कते हो।
ऐसी वहशत पै क्यों न आए प्यार॥
तू भी जी और मुझे भी जीने दे।
जैसे आबाद गुल से पहलू-ए-ख़ार॥
बेनियाज़ी भली कि बेअदबी।
लड़खडा़ती ज़बाँ से शिकवये-यार॥
बन्दगी का सबूत दूँ क्योंकर।
इससे बहतर है कीजिये इन्कार॥
ऐसे दो दिल भी कम मिले होंगे।
न कशाकश हुई न जीत न हार॥