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हैं सुनिश्चित भूमिकाएं / विष्णु विराट

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कवि: विष्णु विराट

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हैं सुनिश्चित भूमिकाएं,

व्याघ्य्रटोले की सभाएं

भेड़ियों की मंत्रणाएं,

हिरन-वन में।


सब शिकारी मन गए हैं,

धनुर्धारी तन गए हैं,

युद्धवीरों को मिला सादर निमंत्रण

शांति से संहार होंगे,

अब न सोच विचार होंगे,

झूठ सच का अब न होगा सिंधुमंथन

सब अहिंसक देश होंगे,

सत्यनिष्ठ संदेश होंगे,

रक्षकुल की घोषणाएं

हिरन-वन में।


अब न कोई त्रस्त होगा,

तृप्त उदर समस्त होगा,

सुलभ सामिष भोज होगा एक जैसा

ये नया अभियान होगा,

रुचि रुधिर का पान होगा,

हाथ श्वेत सरोज होगा एक जैसा

शक्ति सबके साथ में है,

दंड सबके हाथ में है,

सब पसीने में नहाएं,

हिरन-वन में।


फिर खुशी के खेल होंगे

सुर-असुर में मेल होंगे,

फिर नये संवाद संयोजित सुहाने

क्रुर मुस्काते हुए-से

दांत दिखलाते हुए-से

सब जुड़े हैं आज जंगल के मुहाने

सभ्यता में नत हुए सब,

धवल वसनावृत हुए सब,

क्यों परस्पर ख़ौफ़ खाएं

हिरन-वन में?