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प्यार की नदी / इसाक अश्क

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कवि: इसाक अश्क

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सूखी

गुलदस्ते सी

प्यार की नदी


व्यक्ति

संवेग सब

मशीन हो गए

जीवन के

सूत्र

सरेआम खो गए

और कुछ न कर पाई

यह नई सदी


वर्तमान ने

बदले

ऐसे कुछ पैंतरे

आशा

विश्वास

सभी पात सो झरे

सपनों की

सर्द लाश

पीठ पर लदी।