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कोई तो पीके निकलेगा... / आसी ग़ाज़ीपुरी

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कोई तो पीके निकलेगा, उडे़गी कुछ तो बू मुँह से।

दरे-पीरेमुग़ाँ पर मैपरस्ती चलके बिस्तर हो॥


किसी के दरपै ‘आसी’ रात रो-रोके यह कहता था--

कि "आखि़र मैं तुम्हारा बन्दा हूँ, तुम बन्दापरवर हो"॥


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तुम्हीं सच-सच बता दो कौन था शिरीं की सूरत में।

कि मुश्तेख़ाक की हसरत में कोई कोहकन क्यों हो॥



टुकडे़ होकर जो मिली, कोहकनो-मजनूँ को।

कहीं मेरी ही वो फूटी हुई तक़दीर न हो॥