भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जेल से लिखी चिट्ठियाँ-2 / नाज़िम हिक़मत

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:23, 21 जुलाई 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: नाज़िम हिक़मत  » संग्रह: चलते फ़िरते ढेले उपजाऊ मिट्टी के
»  जेल से लिखी चिट्ठियाँ-2

अपना बेटा बीमार है
उसका बाप है जेल में
भारी माथा तुम्हारा टिका हुआ है तुम्हारे थके हाथों पर
एक ही मुक़ाम पर हैं हम सब, ये दुनिया और अपन लोग

लोग लोगों को पहुँचाएंगे
बुरे दिनों से बेहतर दिनों तक
हमारा बेटा चंगा हो जाएगा
उसका बाप छूट जाएगा जेल से
तुम मुस्कराओगी गहरे अपनी भूरी आँखों में
एक ही मुक़ाम पर हैं हम सब, ये दुनिया और अपन लोग


अंग्रेज़ी से अनुवाद : सोमदत्त