Last modified on 24 जुलाई 2009, at 20:56

ख़ुद को सलाह / हो ची मिन्ह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:56, 24 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हो ची मिन्ह |संग्रह= }} <poem> शीतकाल की ठण्डक और बरबा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शीतकाल की
ठण्डक और बरबादी के बग़ैर
असम्भव है
वैभव और गरमाहट वसन्त की

बनाया दुर्घटनाओं ने
कड़ियल और सहनशील मुझे
फ़ौलाई बना दिया है
मेरे चित्त को