Last modified on 25 जुलाई 2009, at 12:49

आधी रात को एक आवाज़ / किरण अग्रवाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:49, 25 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण अग्रवाल |संग्रह=गोल-गोल घूमती एक नाव / किरण ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आधी रात को
एक आवाज़ उगती है
अंधेरे के आवेष्टित अंगों पर
फ़ैलती जाती है
एच०आई०वी० वायरस की तरह
गली-कूचों में
आसमान में
दस्तक दे रही है
बन्द खिड़कियों पर
झाँक रही है
खुले रोशन्दान से
उतर आई है रेंगकर नीचे
बिस्तर पे
सहम के
अलग हो गए हैं प्रेमी युग्म
टटोल रहे हैं अनधिकृत आवाज़ को
उलझ गए हैं एक-दूसरे के अभिलाषित आगोश में फिर
टेलीविजन पर रो रहा है एक अनाथ बच्चा
पोस्टरों पर चिपका है एक सुखी परिवार
कॉण्डम के विज्ञापन के साथ
अख़बारों में लड़ी जा रही है एक लावारिस लड़ाई
मौत ले रही है मदहोश अंगड़ाई
आधी रात को
सहसा जग गई हूँ मैं
तरन्नुम में गा रहा है कोई।