कानन दूसरो नाम सुनै नहीं, एक ही रंग रंग्यो यह डोरो।
धोखेहु दूसरो नाम क, रसना मुख काहिलाहल बोरो॥
'ठाकुर चित्त की वृत्ति यही, हम कैसें टेक तजैं नहिं भोरो।
बावरी वे अंखियां जरि जांहिं, जो सांवरो छवि निहारतिं गोरो॥
कानन दूसरो नाम सुनै नहीं, एक ही रंग रंग्यो यह डोरो।
धोखेहु दूसरो नाम क, रसना मुख काहिलाहल बोरो॥
'ठाकुर चित्त की वृत्ति यही, हम कैसें टेक तजैं नहिं भोरो।
बावरी वे अंखियां जरि जांहिं, जो सांवरो छवि निहारतिं गोरो॥