Last modified on 28 जुलाई 2009, at 03:51

रोज न आइये जो मन मोहन / ठाकुर

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:51, 28 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ठाकुर }} <poem>रोज न आइये जो मन मोहन, तौ यह नेक मतौ सुन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रोज न आइये जो मन मोहन, तौ यह नेक मतौ सुन लीजिये।
प्रान हमारे तुम्हारे अधीन, तुम्हैं बिन देखे सु कैसे कै जीजिये॥
'ठाकुर लालन प्यारे सुनौ, बिनती इतनी पै अहो चित दीजिये।
दूसरे, तीसरे, पांचयें, आठयें तो भला आइबो कीजिये॥