कवि: राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर'
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धरती, अम्बर, फूल, पांखुरी
आंसू, पीड़ा, दर्द, बांसुरी
मौलसिरी, श्रतुगन्धा, केसर
सबके भीतर एक गीत है
पीपल, बरगद, चीड़ों के वन
सूरज, चन्दा, ऋतु परिवर्तन
फुनकी पर इतराती चिड़िया
दूब धरे कोमल निहार-कन
जलता जेठ, भीगता सावन
पौष, माघ के शिशिराते स्वर
रात अकेली चन्दा प्रहरी
अरूणोदय की किरण सुनहरी
फैली दूर तलक हरियाली
उमड़ी हुई घटायें गहरी
मुखर फूल शरमाती कलियां
मादक ऋतुपति सूखा पतझर
लेकर भीतर स्नेहिल थाती
जले पंतगा दीपक, बाती
खोल रहा कलियों का घूघंट
यह भौंरा नटखट उत्पाती
बिन पानी के मरती मछली
सर्पाच्छादित चन्दन तरूवर
प्यास रूप की, दृढ़ आलिंगन
व्याकुल ऑंखें आतुर चुम्बन
गुथी अंगुलियां नदिया का तट
वे सुध खोये-खोये तन-मन
खड़ी कदम्ब तले वह राधा
टेरे जिसको वंशी का स्वर
प्रियतम का पथ पल-पल ताकें
पथ पर बिछी हुई ये आंखें
काल रात्रि का मारा चकवा
भीग रहीं चकवी की पांखें
कृष्ण-विरह में सूखी जमुना
त्राहि-त्राहि करते जो जलचर