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केलि की राति अघाने नहीं / मतिराम

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केलि की राति अघाने नहीं, दिनँ मैं लला पुनि घात लगाई।
प्यास लगी कोउ पानी दै जाउ, यों भीतर बैठि कै बात सुनाई॥

जेठी पठाई गई दुलही, हँसि हेरि हिये 'मतिराम बुलाई।
कान्ह के बोल पै कान न दीन्हों, सु गेह की देहरी पै धरि आई॥