कितै दिन ह्वै जु गए बिनु देखे।
तरुन किसोर रसिक नँदनंदन, कछुक उठति मुख रेखे॥
वह सोभा वह कांति बदन की, कोटिक चंद बिसेषे।
वह चितवनि वह हास मनोहर, वह नागर नट वेषे॥
स्यामसुंदर संग मिलि खेलन की, आवज जीय उपेषे।
'कुम्भनदास' लाल गिरधर बिन, जीवन जनम अलेषे॥