भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भेड़िए की आंखें सुर्ख हैं / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:59, 5 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना }} <poem> भेड़िए की आंखें सुर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भेड़िए की आंखें सुर्ख हैं।

उसे तबतक घूरो

जब तक तुम्हारी आंखें

सुर्ख न हो जाएं।

और तुम कर भी क्या सकते हो

जब वह तुम्हारे सामने हो?