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ब्रज के बिरही लोग बिचारे / परमानंददास
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बिन गोपाल ठगे से ठाढे अति दुरबल तन हारे॥ मात जसोदा पंथ निहारत निरखत साँझ सकारे। जो कोइ कान्ह-काह कहि बोलत ऍंखियन बहत पनारे॥ यह मथुरा काजर की रेखा जे निकसे ते कारे। 'परमानंद' स्वामि बिनु ऐसे ज्यों चंदा बिनु तारे॥