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केतकि असोक, नव चंपक बकुल कुल / सेनापति
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केतकि असोक, नव चंपक बकुल कुल,
कौन धौं बियोगिनी को ऐसो बिकरालु है।
'सेनापति साँवरे की सूरत की सुरति की,
सुरति कराय करि डारतु बिहालु है॥
दच्छिन पवन ऐतो ताहू की दवन,
जऊ सूनो है भवन, परदेसु प्यारो लालु है।
लाल हैं प्रवाल, फूले देखत बिसाल जऊ,
फूले और साल पै रसाल उर सालु हैं॥