भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोलनि ही औरैं कछू / नागरीदास

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:51, 6 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नागरीदास }} Category:कुण्डलि <poeM>बोलनि ही औरैं कछू, रस...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बोलनि ही औरैं कछू, रसिक सभा की मानि।
मतिवारे समझै नहीं, मतवारे लैं जानि।

मतवारे लैं जानि आन कौं वस्तु न सूझै।
ज्यौ गूंगे को सैन कोउ गूंगो ही बूझै॥

भीजि रहे गुरु कृपा, बचन रस गागरि ढोलनि।
तनक सुनत गरि जात सयानप अलबल बोलनि॥