भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोसों नारायन जिन रख दुराव / नारायण स्वामी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:28, 6 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नारायण स्वामी }} Category:पद <poeM>मोसों 'नारायन' जिन रख ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोसों 'नारायन' जिन रख दुराव,
जो तू कहेगी सोई मैं तेरो करूं उपाय
जासों रोग घटै मिटै सकल पीर॥
चाहै तू जोग करि भृकुटि मध्य ध्यान धरि,
चाहै नाम रूप मिथ्या जानि कै निहारि लै।
निर्गुन, निर्भय, निराकार ज्योति व्याप रही,
ऐसो तत्वज्ञान निज मन मैं तू धारि लैं॥