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बाग बिलोकनि आई इतै / द्विज

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बाग बिलोकनि आई इतै, वह प्यारी कलिंदसुता के किनारे।
सो द्विजदेव कहा कहिए, बिपरीत जो देखति मो दृग हारे॥
केतकी चंपक जाति जपा, जग भेद प्रसून के जेते निहारे।
ते सिगरे मिस पातन के, छबि वाही सों मांगत हाथ पसारे।