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जब जहाँ जाना हो / नंदकिशोर आचार्य
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तलाई की बाहों में
बेसुध
होता जाता चांद
घने झुरमुट में
मुंद जाती हैं पलकें
आकाश को
जब जहाँ जाना हो
चला जाए।