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पीता है कवि / नंदकिशोर आचार्य

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पीता है कवि
नहीं तो क्या करे वह
कैसे भरे वह ख़ुद को
खाली कर रहा है जो?

टूटा जा रहा है घर-बार
ख़ुद को बचाने के लिए
पुराने-नए सब अहबाब
जी के बहलाने के लिए
बिकता जा रहा है बाज़ार
जाने किस खजाने के लिए
ये चैनल, ये अख़बार
नित-नए हंगामे के लिए
जैसे भी सफ़ल हैं जो
रास्ता बतलाने के लिए
बिख़री जा रही तहज़ीब
अपने सजाने के लिए
और सबसे ऊपर वाइज
रात-दिन समझाने के लिए

जब सभी पीते जा रहें हैं उसे-
चुक जाए तो ये सब पीएंगे किसे?
कवि इसलिए पीता है
ख़ुद मर कर
इन सबकी ख़ातिर
जीता है।