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भर आईं आँखें / नंदकिशोर आचार्य

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"प्रेम-कविता ही क्यों लिखते हो तुम सदा"
-पूछा उसने।
"हमेशा प्रेम करता हूँ इसलिए"- मैं बोला।
"और नहीं है कुछ कविता के लिए?"
"कविता लिखना ख़ुद प्रेम करना है।"
"कौन पढ़ता-सुनता होगा इनको?"
"वह जो करता है प्रेम"
"जैसे?"
"जैसे तुम"
कहते हुए भर्राया था स्वर मेरा
उसकी भर आईं आखें।