भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भर आईं आँखें / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:44, 15 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=कवि का कोई घर नहीं होता ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

"प्रेम-कविता ही क्यों लिखते हो तुम सदा"
-पूछा उसने।
"हमेशा प्रेम करता हूँ इसलिए"- मैं बोला।
"और नहीं है कुछ कविता के लिए?"
"कविता लिखना ख़ुद प्रेम करना है।"
"कौन पढ़ता-सुनता होगा इनको?"
"वह जो करता है प्रेम"
"जैसे?"
"जैसे तुम"
कहते हुए भर्राया था स्वर मेरा
उसकी भर आईं आखें।