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अजब है माया / नंदकिशोर आचार्य

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तराशा गया सूरज
संज्ञा के अनुकूल
सूरज के अनुकूल
तराशती है ख़ुद को छाया
उसकी तलाश में भटकता सूरज
आज नहीं उसे वह
देख भी पाया।

तराशा ख़ुद को जिसके लिए
उसी से छुपी-छुपी अब
रहती है छाया-
प्रेम की क्या अजब माया!