Last modified on 15 अगस्त 2009, at 16:22

तुम्हें तो बस / नंदकिशोर आचार्य

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:22, 15 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=कवि का कोई घर नहीं होता ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मृत्यु से की होती
इतनी मैंने प्रार्थना
वह भी बख़्श देती मुझे-
तुम्हें तो, बस, मुझको
आवाज़ देनी है
मेरे जिलाने के लिए।