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आख़िर अक्स हैं उसके / नंदकिशोर आचार्य
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एक वह
अक्स पर जो मुग्ध था
अपने
इतना- लय हो गया
उसमें।
और एक वह
-अक्स है जिसका दुनिया
यह
ख़फ़ा-ख़फ़ा-सा रहता है
सब वक़्त
-गो प्रभु कहलाता है!
हम-सब एक-दूजे से
ख़फ़ा रहते हैं क्या इसलिए-
आख़िर अक्स हैं उसके!