भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शब्दों के बीच / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 16 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=कवि का कोई घर नहीं होता ...)
न दो अपने शब्दों में चाहे
जगह थोड़ी-सी
कहीं मिल जाए उनके बीच-
वहीं रह लूंगा।
आँख भर देख लेना बस
कभी चुपचाप
बाक़ी सभी को मुखरित करते हुए-
सहारे उसके
मैं सारा जीवन ख़ामोशी सह लूंगा
कहना होगा जो तुम्हें
गुमसुम ही कह लूंगा।