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आत्मचित्र-1 / नंदकिशोर आचार्य
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एक आत्मचित्र बनाना है मुझे
तुम्हारे लिए
देख लो तुम जिससे
अपने को कैसे देखता हूँ मैं।
सब से पहले आँखें
-आत्मचित्र, सच पूछो तो, आँखें ही होता है-
जिनसे दुनिया यह
मेरे चित्रों की हो जाती है
पर आँखें बनाऊँ कैसे?
खुली बनाऊंगा
तुम्हारा बिम्ब उनमें उभर आता है
-हर शै में तुम्हीं को खोजती हैं वे
बेहतर है आँखें मुंदी ही रखना
जो न कुछ भी देख पाएंगी
न उनमें ही दिखेगा कुछ।
स्वीकार होगा क्या तुम्हें
वह आत्मचित्र मेरा-
आँखें मेरी मुंद गई हों जिसमें
देखते-देखते तुम को।