भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
केसरि से बरन सुबरन / बिहारी
Kavita Kosh से
59.161.11.51 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:26, 4 अक्टूबर 2006 का अवतरण
लेखक: बिहारी
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ
बरनीं न जाइ अवरन बै गई।
कहत बिहारी सुठि सरस पयूष हू तैं,
उष हू तैं मीठै बैनन बितै गई।
भौंहिनि नचाइ मृदु मुसिकाइ दावभाव
चचंल चलाप चब चेरी चितै कै गई।
लीने कर बेली अलबेली सु अकेली तिय
जाबन कौं आई जिय जावन सौं दे गई।।