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मैं ही हूँ / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
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मैं ही हूँ प्रभु
और कौन हो सकता है
यह प्रकाश
यह अंधकार
यह महा प्रकृति
यह महाकाल
यह महा जाल
यह महा ज्वाल
इस अनन्त का भार
और कौन ढो सकता है।