Last modified on 20 अगस्त 2009, at 13:44

स्त्री को समझने के लिए / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:44, 20 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=फिर भी कुछ रह जा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कैसे उतरता है स्तनों में दूध
कैसे झनकते हैं ममता के तार

कैसे मरती हैं कामनाएँ
कैसे झरती हैं दन्तकथाएँ

कैसे टूटता है गुड़ियों का घर
कैसे बसता है चूड़ियों का नगर

कैसे चमकते हैं परियों के सपने
कैसे फ़ड़कते हैं हिंस्र पशुओं के नथुने

कितना गाढ़ा लांछन का रंग
कितनी लम्बी चूल्हे की सुरंग

कितना गहरा सृजन का अन्धकार
कितनी रहस्यमय मौन की पुकार

स्त्री, तुम्हें समझने के लिए
जन्म लेना पड़ेगा स्त्री रूप में।