भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे सन्तोष है / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:21, 20 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=आखर अनंत / विश्व...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बची है धरती में जन्म देने की शक्ति
बचा हई बादलों में भूरा रंग
मुझे सन्तोष है

बची है लकड़ी में आग
बचा है नींद में स्वप्न
मुझे सन्तोष है

बच गई हो
ओस की बूंद की तरह
बच्चे की ज़िद की तरह
मुझमें थोड़ा-सा तुम
मुझे सन्तोष है ।