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चुनौती / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
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फिर से एक बार ज़िनगी
शुरू करना चाहता हूँ
फिर से इकट्ठे कर रहा हूँ तिनके
यह जो सूखी हुई गुठली से
फूट रहा है अँखुआ
इसी में लटकाऊंगा
मैं अपना संसार
ओ समुद्री तूफ़ानो !
ओ रेतीली आंधियो !
ओ बर्फ़ीली हवाओ !
फिर चुनौती देना चाहता हूँ
तुम्हें इसी डाल से ।