भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुमने क्या नहीं देखा / ठाकुरप्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:58, 21 अगस्त 2009 का अवतरण
तुमने क्या नहीं देखा
आग-सी झलकती में
तुमने क्या नहीं देखा
बाढ़-सी उमड़ती में
नहीं, मुझे पहचाना
धूल भरी आंधी में
जानोगे तब जब
कुहरे-सी घिर जाऊंगी
मैं क्या हूँ मौसम
जो बार-बार आऊंगी !