भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुले-नग़मा / फ़िराक़ गोरखपुरी
Kavita Kosh से
Amitabh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 21 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= फ़िराक़ गोरखपुरी }} <poem> * '''१ - आँखों में जो बात हो ...)
- १ - आँखों में जो बात हो गई है
आँखों में जो बात हो गई है
एक शरहे-हयात१ हो गई है।
जब दिल की वफ़ात हो गई है
हर चीज की रात हो गई है।
ग़म से छुट कर ये ग़म है मुझको
क्यों ग़म से नजात हो गई है।
मुद्दत से खबर मिली न दिल को
शायद कोई बात हो गई है।